निगाहों से दूर, सपनो में कही वोह नज़र आती तो होगी
अपनों की दुनिया में अब हमेशा मुश्कारती तो होगी
वोह लरज़ते होंठ, वोह मखमली आवाज
आँखों में बसी उसके काजल की धार
किसी और की दुनिया को स्वर्ग बनती तो होगी
निगाहों से दूर, सपनो में कही वोह नज़र आती तो होगी
हे मुशाफिर कियों दूंदता है भूले हुए ज़माने को
छोडा है जिसने तुमको अपनों में सताने को
गहराई तनाहियों की आँखे बताती तो होंगी
मचलती चाहत मिलने को सताती तो होगी
निगाहों से दूर, सपनो में कही वोह नज़र आती तो होगी
हर बात पे उसकी गला रुंध सा कियों जाता है
पैबंद जिगर पर होने का अहसाश करा जाता है
वोह हंसी, वोह शर्म, वोह लाज का घूंघट लगाती तो होगी
कही दूर किसी जिन्दगी को जिन्दगी बनाती तो होगी
निगाहों से दूर, सपनो में कही वोह नज़र आती तो होगी
 
 
 
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