Wednesday, July 29, 2009

कुछ सोच रही है .........


चिलचिलाती धूप में, पत्थर कूटती माँ
कुछ सोच रही है .........

सूखे हुए होंठ, पसीने से तरबतर बदन
काली सियाह बीमार आँखे, आसमान को देख रही हैं
थक कर चूर, टूटती हुयी हिम्मत
टूटे हुए सपनो में झाँक रही है
नाजो से पली बाप की लाडली, आज किस मोड़ पर खड़ी है
नम आंखे सब कह रही है
चिलचिलाती धूप में, पत्थर कूटती माँ
कुछ सोच रही है .........

दो दिनों से बीमार है और कल से कुछ नहीं खाया
कहाँ है वोह समाज जिसने उसको अपनाकर ठुकराया
कल सब पास आने के लिए तरसते थे आज कोई देखता भी नहीं
कल असमान छूना था और आज मौत भी आती नहीं
चिलचिलाती धूप में, पत्थर कूटती माँ
कुछ सोच रही है .........

पास में गंदे से चीथडो में लिपटी हुए उसकी लाडली की किलकारी
सब भ्रम तोड़ रही है
मुथियन भींच लेती है और चेहरा सखत हो जाता है
येही है उसकी दुनिया जिसके लिए उसे जीना है
उसकी लाडली ने ही उसके टूटे हुए सपनो को शीना है
चिलचिलाती धूप में, पत्थर कूटती माँ
सोच रही है कि.........

"बस उसकी लाडली के लिए एक वक्त का दूध मिल जाये"

चिलचिलाती धूप में, पत्थर कूटती माँ
कुछ सोच रही है .........

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